Hindi Writing Blog: 2019

मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

नववर्ष 2020 की हार्दिक शुभकामनाएँ

नववर्ष 2020 की हार्दिक शुभकामनाएँ



जाती सर्द हवाएँ, देती खुशियों का पैगाम |
सिमट चुका है साल पुराना, यादों की चादर तान||
युग्मित बेला गान कर रही, मिलन और जुदाई का |
सूर्य रश्मि की स्वर्णिम आभा, देती है संदेश ||
चमक उठो तुम नये वर्ष में, बन किरणों का तेज |
भेद चलो तुम अधियारे को, उजियारे की ओर |
निर्मम हो कितनी बाधाएँ, बढ़ो लक्ष्य की ओर ||
साहस और सबलता से, तुम जीतोगे हर जंग |
मन में धीरज धरे चले चलो, बस मंजिल की ओर ||
सूर्य रश्मि की स्वर्णिम आभा देती है संदेश...
             (  स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव “कैलाश कीर्ति”)

इन पंक्तियों के साथ --- आप सभी को मेरी तरफ से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ

रविवार, 22 दिसंबर 2019

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रभावित संसार लेकिन दूर होता भारत

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी



ये कहाँ आ गए हैं हम... आखिर क्यों भूलते जा रहे हैं अपनी विरासत को जिसने सिर्फ हमें मूल्यों के मायने ही तो समझाए हैं, जिनपर चलकर इस देश ने सिर्फ और सिर्फ ये जाना है कि कैसे चारों ओर नकारात्मक शक्तियों की मौजूदगी के बावजूद भी इंसानियत को जिंदा रखा जा सकता है वो भी बिना असत्य/हिंसा के मार्ग पर चले| दोस्तों, बेहद अफसोसजनक हैं ये हालात जो हमारे देश को इस हिंसा की चपेट में ढकेलते चले जा रहे हैं और जिसके परिणाम में हम अपनी अनमोल जन धरोहरों के साथ बस देश की अमूल्य धरोहरों को खोते जा रहे हैं और वहीं दूसरी ओर पूरी दुनियाँ में बढ़ती जा रही हिंसक प्रवृत्तियों को कम करने के लिए हमारे राष्ट्रपिता बापू” के विचारों की विरासत को आगे बढ़ाने के उपाय किए जा रहे हैं जिसका जीता जागता उदाहरण है दुनियाँ के सुपर पावर अमेरिका द्वारा अमेरिका की संसद में गांधी जी के विरासत को बढ़ावा देने वाले बिल का पेश किया जाना जिसके जरिये अमेरिका के दिग्गज नागरिक अधिकार नेता जॉन लुईस ने महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग (Martin Luther King) के विरासत को बढ़ावा देने के लिए एक विधेयक प्रतिनिधि सभा में पेश किया जिसमें आने वाले 5 वर्षों के लिए 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बजटीय आवंटन की मांग की गयी है|
दोस्तों, अमेरिकी हाउस में पेश किए गए इस बिल को 6 डेमोक्रेट्स (Democrats) सांसदों का भी समर्थन हासिल हुआ है जिसमें 3 भारतीय मूल के डॉ० एमी बेरा, रो खन्ना और प्रमिला जयपाल भी शामिल हैं इनके अलावा 3 काँग्रेस नेता ब्रेंडा लॉरेंस, ब्रांड शेरमैन और जेम्स मैक गवर्न शामिल हैं| दोस्तों, अमेरिकी हाउस में पेश इस बिल को मिले 3 भारतीयों के समर्थन इस बात को सिद्ध कर रहे हैं कि हम भारतीय विदेशों में गांधी जी के मूल्यों की वकालत कर उन्हें पूरी दुनियाँ को सिखाने की भूमिका निभा रहे हैं तो भारत में क्यों नहीं| मौजूदा हालत में हिंसा को छोड़ गांधी जी के बताए अहिंसा के मार्ग पर चलकर अपनी बात लोगों तक पहुंचाने की आशा लिए, जय हिन्द, जय भारत...

रविवार, 1 दिसंबर 2019

आक्रोश

आक्रोश

मौन कर दी है लेखनी
जगा दो इस समाज को,
कलंक बन चुके हैं जो,
मिटा दो इनका अक्स तुम,
बस इस समाज से,
निर्द्वंद से हैं घूमते,
समाज के ये भेड़िये,
धधक रही है अग्नि सी,
चेतना मूर्छित किए,
क्यूँ हुआ, कैसे हुआ
ये अब सोच से भी, है परे
ज्ञान की ज्योति का,
इन पर नहीं असर कोई,
इन्हें तो बस चाहिए, वेदना ही वेदना
ना कोई संवेदना,  
मिटा दो इनका अक्स तुम,
बस इस समाज से......(रश्मि श्रीवास्तव “कैलाशकीर्ति”)

मन के हर कोने को झकझोरती प्रियंका की यादें बस चीत्कार कर हम कलम के योद्धाओं को एक ही आवाज दे रही है, बस अब बहुत हुआ ये सबकुछ, लिखने-लिखाने से परे हटकर, आओ हम सब मिलकर समाज की इस वीभत्सता को रोकने के लिए हर पल एक आंदोलन चलाएँ ताकि रुक जाए, ये सबकुछ किसी भी तरह बस रुक जाए...

रविवार, 24 नवंबर 2019

सुलगती धरती और तरक्की का दावा करती इंसानी सभ्यता

World Pollution

दोस्तों, आज मैं आप सभी से जिस संवेदनशील विषय पर बात करना चाहती हूँ वो न केवल इस धरती से जुड़ा है अपितु ये वो चेतावनी है जो पृथ्वी के अस्तित्व के साथ हमारे मानवीय जीवन को भी चुनौती दे रहा है| दोस्तों, हालांकि ये मुद्दा गंभीर है लेकिन इंसानी कोशिशें किसी भी गंभीरता पर हमेशा से भारी पड़ती आई हैं और जिसका नतीजा ये निकला है कि इस धरती पर रह रहे इन्सानों ने पहाड़ों को काटकर भी अपना रास्ता निकाल लिया है| दोस्तों, अब वक्त आ चुका है कि हम सब अब खुद से अलग होकर अपनी पृथ्वी और इससे जुड़े पर्यावरण को बचाए रखने में स्वयं की छोटी और महती भूमिका निभाएँ जिसके लिए मैं कुछ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों घटनाक्रमों की चर्चा करूंगी ताकि हमें अपनी भूमिकाएँ तात्कालिक रूप से शुरू करने का पता चल सके|
दोस्तों____अभी हाल ही में मोनको में अपनाई गयी इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की विशेष रिपोर्ट ने बढ़ते सामुद्रिक जल स्तर को नियोजित करने के लिए दुनियाँ को तत्काल कदम उठाने के लिए आगाह किया है|
---“सोलह साल के पढ़ने लिखने की उम्र में धरती को बचाने की मुहीम में लगी स्टाकहोम में जन्मी ग्रेटा थनबर्ग (Greta Thunberg) ने न केवल अनक्लाइमेट एक्शन सम्मिट में हाउ डेयर यू  (How Dare You) शीर्षक से भाषण दिया बल्कि दुनियाँ को जगाने के लिए फ्राइडेज फॉर फ्युचर (Fridays For Future) नाम के आंदोलन से दुनियाँ भर के स्कूली छात्रों को जोड़ने का अभियान शुरू किया है|
----“पूरे विश्व को 17% ऑक्सीज़न आपूर्ति करने वाले अमेज़न के जंगल, आग की चपेट में (ऐसे ही कई अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम भी इस सूची में शामिल हैं) और अगर राष्ट्रीय स्तर की बात हो तो ये आकड़े लाल निशान को भी पार कर गए हैं जहां साँसे भी अब खरीदकर लेनी पड़ती है (ऑक्सीज़न सिलेन्डर और एयर प्यूरीफायर के जरिये)|”
---“देश की राजधानी दिल्ली गैस चेम्बर में तब्दील|”
---“प्रदूषण की भयावह चपेट में सम्पूर्ण उत्तर भारत (न जाने और कितने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम) कहाँ तक उनका ब्योरा दूँ|”

मुझे तो आप सबसे बस इतना कहना है कि आइये हम सब एकजुट होकर सीमित साधनों से पृथ्वी को बचाने की पहल करें| मैंने देखा है कि तरक्की और शान-शौकत के प्रदर्शन में हम सभी अपनी असली जरूरत हवा, धूप, पानी की बलि चढ़ाते जा रहे हैं|
दोस्तों, मेरे इस ब्लॉग में आप ने पर्यावरण को सुरक्षित रखने की पहल करते कई आर्टिक्ल(Article) पढे होंगे पर देश दुनियाँ के भयावह स्थिति से रूबरू होते ही न जाने क्यों एक बार फिर से मेरी लेखनी आवाज बनकर शब्दों को ढालने लग जाती है| दोस्तों, आइये अभी भी वक्त है हम अपनी धरती को बचाने की पहल शुरू करें, इससे पहले की कहीं देर न हो जाए…..


शनिवार, 16 नवंबर 2019

विश्वगुरु बनने की ओर पुनः अग्रसर भारत

World Leadership


बदल रहा है हिंदुस्तान, बदल रही इसकी संतान |
युगों-युगों से बहती जमुना-गंगा,दे रही इसको वरदान |
उत्तर से दक्खिन तक अब तो,एक रहेगा हिंदुस्तान |
बदल रहा है हिंदुस्तान, बदल रही इसकी संतान...
जात पात मजहब से भी अब,उबर रहा है हिंदुस्तान |
बदल रहा है हिंदुस्तान, बदल रही इसकी संतान...
मंदिर के बजते घंटों से, मस्जिद की उठती अजान से,
महक रहा है हिंदुस्तान, महक रहा है हिंदुस्तान...  
                        स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव (कैलाश कीर्ति)

भारत दुनियाँ के मानचित्र पर सुशोभित एक ऐसा राष्ट्र जिसके समृद्धवान अतीत ने उसे “विश्वगुरु” कहलाए जाने के तमगे से अलंकृत कराया है, विश्वगुरु अर्थात समग्र संसार को राह दिखाने वाला ऐसा पथ प्रदर्शक जिसके मार्ग पर चलने की अभिलाषा से दुनियाँ के अन्य राष्ट्र भी प्रेरित हो जाएँ|

ऐसा ही कुछ अद्वितीय स्थान रहा है हमारे राष्ट्र का जिसकी गवाही सदियाँ देती आई हैं,परंतु कुछ वक्त ऐसे भी इस राष्ट्र की भाग्य रेखा को परिवर्तित करने की चेष्टा करते आए हैं जिससे पल भर को ये लगा कि दुनियाँ को प्रेम, सद्भाव, और धन-धान्य की अनमोल विरासत देने वाले राष्ट्र के हाथों से सबकुछ छिन गया हो, लेकिन वो कहते हैं न “गुरु तो गुरु ही होता है|”फिर क्या था विश्वगुरु कहलाने वाले  भारत ने पुनः खुद में समाहित दुनियाँ के कोने-कोने से आई नकारात्मक ऊर्जाओं को समय की बहती अविरल धारा में धोना प्रारम्भ किया तो देखते ही देखते भारत माँ के वर्तमान आँचल के साथ भावी भविष्य का आँचल भी महकने लगा और उसकी छाँव तले माँ भारती के बच्चे एक बार फिर से इतिहास रचने चल पड़े, तभी तो लगभग 400 वर्षों की प्रतीक्षा के बाद 9 नवंबर 2019 को सूप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाये गए बहुप्रतीक्षित फैसले पर जिस सामाजिक सौहार्द की झलक दुनियाँ ने देखी वो इस बात की ही पुष्टि करता है कि अब माँ भारती के सभी बच्चे (हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई...)एक हैं और अब उनकी ये एकता आने वाले दिनों में दुनियाँ को पुनः योग, भाषा के रूप में संस्कृत का समर्पण, शून्य का आविष्कार, प्रथम प्रयास पर मंगल ग्रह पर पहुँच, जैसे अनेकों योगदान इस संसार को देने की ओर अग्रसर होंगे क्योंकि अब जो भारत दिख रहा है वो एक ऐसा भारत है जहां नीति निर्माताओं का साथ देता हर भारतीय नजर आता है, जिसके चलते न केवल भारतीय समाज में सकारात्मक परिवर्तन दर्ज किये गए हैं, अपितु इस आगाज ने ये भी साबित कर दिया है कि अब राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक अपने राष्ट्र के विकास के ही सपने देखता है, लिहाजा अब ये तय हो चुका है कि हमारे देश में एक बार फिर से सद्भाव और भाईचारे ने दस्तक दे दी है| ऐसे में राष्ट्र और समाज के समग्र विकास के साथ जुड़ा ये गठजोड़ वाकई आने वाले भविष्य में भारत को सशक्त राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित करेगा|

दोस्तों भारत के इस वर्तमान सफर का साक्षी बनने पर हम सभी आज गर्व का अनुभव करते हैं क्योंकि देश आज सामाजिक सौहार्द की वो मिसाल पेश कर रहा है जो कभी इसकी पहचान हुआ करती थी, दूसरे शब्दों में कहूँ तो मेरा भारत पुनः विश्व गुरु बनने के पथ पर अग्रसर हो चुका है और जिसमें सहयोग दे रहे मेरे राष्ट्रवासियों का योगदान वाकई सराहनीय है साथ ही उनके इन्हीं प्रयासों के चलते मेरे राष्ट्र की पहचान “विविधता में एकता” न केवल सदैव कायम रहेगी बल्कि सम्पूर्ण जगत को एकता का संदेश देने में सफल होगी|
            बस इसी उम्मीद के साथ जय हिन्द जय भारत...

मंगलवार, 5 नवंबर 2019

वैश्विक जनसंख्या असंतुलन कहीं खतरे का संकेत तो नहीं!!!

World Population Disequilibrium

मौजूदा दौर में राजधानी दिल्ली सहित पूरा उत्तर भारत प्रदूषण की ऐसी जद में लिपट चुका है जिसमें ज़िंदगियों द्वारा ली जा रही सासों तक को जहरीली आबोहवा का शिकार होना पड़ रहा है, आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? यदि एक विश्लेषक के नजरिए से हम इसे देखें तो ही हम ये जान पाएंगे कि जीवन को चुनौती दे रहे इस वातावरण के लिए मात्र “पराली”, दीपावली के पटाखे”, “गाड़ियों या कारखानों से निकले धुएँ” ही जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि कहीं न कहीं जिम्मेदार है हमारी बेतहाशा बढ़ी हुई आबादी जिसकी जरूरतों को पूरा करने में सारे संसाधन दम तोड़ रहे हैं और इतना ही नहीं हमारे राष्ट्र की बढ़ी आबादी के चलते, और दूसरे मोर्चों पर भी हमें एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ रही है|

दोस्तों, ऐसा न केवल हमारे देश के साथ हो रहा है बल्कि दुनियाँ के दूसरे कई अन्य देश भी बढ़ती आबादी के बोझ तले खुद को संभालने में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक आबादी रिपोर्ट 2019 ने इस बात के संकेत दिये हैं की 4.5 बिलियन वर्ष पहले बनी पृथ्वी की आबादी भले ही 2050 में 770 करोड़ (वर्तमान आबादी) से बढ़कर 970 करोड़ पहुँच जाएगी लेकिन दुनियाँ के 55 ऐसे देश होंगे जहां की आबादी लगातार घटती जाएगी जिसके परिणाम स्वरूप वैश्विक जनसंख्या असंतुलन का खतरा बढ़ जाएगा और ऐसा मात्र जन्म दर में आई कमी के चलते नहीं हो रहा है बल्कि इसके लिए लोगों द्वारा पलायन के घटनाक्रम, किसी विशेष राष्ट्र की आरजकतापूर्ण परिस्थितियों जैसे कई अन्य कारक भी शामिल हैं| दूसरे शब्दों में कहें तो धरती का एक हिस्सा जनसंख्या के बढ़ते क्रम की समस्याओं से उलझा होगा तो दूसरा हिस्सा घटते क्रम की, जिसके चलते इस संसार में नीतियों, योजनाओं और कानून के समग्र क्रियान्वयन का भी संकट पैदा हो जाएगा और ऐसा नहीं है कि ये भावी भविष्य द्वारा ही निर्धारित है, इसकी शुरुआत  तो काफी पहले से हो चुकी है| बढ़ती आबादी द्वारा छोड़ी गयी असमानता, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन की धरोहर ही कुछ देशों की घटती आबादी का बड़ा कारण बन रही है और जिसका नतीजा वैश्विक जनसंख्या असंतुलन के रूप में दुनियाँ के सामने आना प्रारम्भ हो चुका है|

आज दुनियाँ के कई ऐसे सम्पन्न राष्ट्र हैं जो बढ़ती आबादी से त्रस्त हैं, जैसे चीन, भारत, अमेरिका, ब्राज़ील, आदि तो वहीं दूसरी ओर डेन्मार्क, जापान, रोमानिया, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, हाँगकाँग जैसे देश अपने राष्ट्र की स्थिर आबादी की समस्या से लड़ रहे हैं जो मानवीय उन्नति के लिए चिंताजनक है| दोस्तों, अनादि काल से हमारी पृथ्वी इस ब्रह्मांड का जीवनदायी ग्रह रही है और इसके निर्माण के वर्षों गुजरने के बाद लगभग 1900 ईस्वी में इस संसार के लिए जनसंख्या के दृष्टिकोण से सबसे बड़ी चुनौती थी शिशु मृत्यु दर (4 में से 1 बच्चा जीवित रहता था) लेकिन आज स्थिति उलट है और इसका सबसे ज्यादा असर यूरोपीय देशों पर पड़ा है जहां घटती आबादी ने सम्पूर्ण वैश्विक आबादी को असंतुलित कर दिया है| प्रकृति द्वारा दिये गए संतुलन-असंतुलन के पलड़े में किसका हिस्सा भारी होगा ये तो आने वाला वक्त तय करेगा परंतु सृष्टि को संतुलित रखती मानवीय आबादी का संतुलन कहीं किसी खतरे का संकेत तो नहीं,ये प्रश्न अभी अनुत्तरित है?




रविवार, 13 अक्तूबर 2019

सशक्त ग्रामीण बचपन - नये कल की पहल

Indian Childhood


बचपन बोलने और सुनने मात्र से ही हमारे कानों में सुनहरी यादों की बंद आलमारी फिर से खुल जाती है और ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि ये वही बचपन है जिसे हम सभी अपने जीवन के यादगार लम्हों की तरह जो जीते हैं और इससे जुड़ी हर एक सीख और शिक्षा को हम अपनाकर न केवल अपने भविष्य का निर्माण करते हैं अपितु खुद से जुड़े इस समाज व इस राष्ट्र को भी नयी दिशा देने की क्षमता विकसित कर लेते हैं, लेकिन यदि किन्हीं कारणों से हमारा ये बचपन आहत हो तो इससे न केवल हमारा खुद का नुकसान होता है बल्कि कहीं न कहीं ये एक बचपन भी पूरे राष्ट्र को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखता है| इसीलिए हमारे देश में पल रहे हर एक बचपन को हमें न केवल सशक्त बनाना होगा अपितु उसे पूरे राष्ट्र को समृद्ध व खुशहाल बनाने वाला भी बनना होगा|

दोस्तों! आज अपने इस लेख में मैंने भारत के गाँव में पल रहे बचपन यानि हमारे उन नन्हें-मुन्हों को सशक्त बनाने की पहल का समर्थन किया है जो हमारे देश के आने वाले कल का भविष्य लिखेंगे| जैसा कि हम सब जानते हैं कि आज के मौजूदा दौर के नगरों और महानगरों की तुलना में हमारे गाँव में रह रहे बच्चे उतने सशक्त नहीं बन पा रहे जैसे बनने की उन्हें इस वक्त में जरूरत है| हालाँकि उन्हें सशक्त बनाने के लिए हमारे राष्ट्र का नेतृत्व भी पूर्णतया कटिबद्ध है और वो इसके लिए समय-समय पर ठोस रणनीतियों के जरिये कदम भी उठाता है लेकिन ग्रामीण इलाकों में रह रहे लोग अशिक्षा के चलते इसका भरपूर लाभ नहीं उठा पाते, वो अपने बच्चों को स्कूल केवल छात्रवृत्ति और मिड-डे मील पाने की लालसा में भेजते हैं| ऐसे माहौल में हम सबको मिलकर उनकी इस अवधारण को बदलने में उनके माता-पिता की मदद करनी होगी ताकि उनके जीवन स्तर में बदलाव दर्ज हो और वो हमारे नन्हें-मुन्हों की जीवन शैली में बदलाव लाने योग्य बन सकें, वो स्वच्छता के साथ स्वास्थ्य को भी अपनाएं जिससे हमारे नौनिहाल स्कूल से लेकर घर तक के फासले को उसी प्रकार तय करें जैसे नगरों-महानगरों में रहने वाले बच्चे करते हैं|

दोस्तों! हमारे देश की 75% आबादी गाँव में रहती है| कहते हैं हमारे गाँवों में ही हमारा भारत बसता है, ऐसे में इन गाँव में रह रहे इन बच्चों को शासन प्रशासन द्वारा मुहैया कराई जा रही समग्र सुविधाओं के साथ उनके माता-पिता को आगे आकर अपने बच्चों को सशक्त बनाना होगा और उनके इस कदम में हम भारतीय नागरिकों को भी जहां तक अवसर मिले और जितना हम कर सकें उनका सहयोग करना होगा क्योंकि हम सबकी एक छोटी सी कोशिश किसी बच्चे की जीवन धारा बदल दे तो इससे बढ़के न कोई जनसेवा हैन कोई राष्ट्रसेवा|

दोस्तों! मैंने महसूस किया है कि भारत के गाँव में पलते ये नौनिहाल प्रतिभा संपन्नता व योग्यता के मामले में कहीं से कम नहीं, जरूरत है बस इन्हें दिशा देने की क्योंकि भारत के गाँव में पलता एक-एक बच्चा सशक्त और सक्षम बन जाये तो हमारे राष्ट्र का भाग्य परिवर्तन इस हद तक सुनिश्चित होगा जिसपर आने वाली पीढ़ियाँ खुद को गौरान्वित महसूस करेंगी|

तो आइये सशक्त ग्रामीण बचपन की मुहीम को समर्थन देकर नये कल की इस पहल का स्वागत करें|



मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

दशहरा (Dussehra) की हार्दिक शुभकामनाएँ

Dussehra


राम की गाथा सदियों से गा रहे हैं,
उनमें समाहित गुणों को अपना कहाँ रहें हैं,
राम से कर दूरी रावण जला रहे हैं,
जय-पराजय की परंपरा निभा रहे हैं,
कुसंगति का, दे साथ
मूल्यों को मिटा रहे हैं
खुद होकर जिम्मेदार, बेकसूर बता रहे हैं
कलयुग की रामायण हम खुद बना रहे हैं
अभी वक्त है संभल लें, फिर भी दूर जा रहे हैं
राम की गाथा सदियों से गा रहे हैं,
        राम की गाथा सदियों से गा रहे हैं...
                            स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव (कैलाश कीर्ति)
स्वयं के अन्तर्मन से प्रभु राम के गुणों को अपनाने के संकल्प के साथ बुराई पर अच्छाई की जीत के इस जीवंत पर्व विजयादशमी की आप सभी को ढेरों शुभकामनाएँ...


रविवार, 29 सितंबर 2019

नवरात्रि (Navratri) की शुभकामनाएँ

नवरात्रि


उद्घोष है, आरंभ है,
नवरात्रि का प्रारम्भ है|
जगमगाई सी दिशाओं में,
जयकारों की ही गूंज है|
चल पड़ा फिर सिलसिला,
शक्ति की भक्ति का|
ना कहीं भी द्वेष हो,
ना कहीं क्लेश हो|
मातृ-छाँव में सभी,
सुखों का प्रवेश हो|
सुखों का प्रवेश हो...
     स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव (कैलाश कीर्ति)

इन शब्दों के साथ माँ दुर्गा के आगमन पर्व नवरात्रि की आप सभी को ढेरों शुभकामनाएँ...

शनिवार, 28 सितंबर 2019

भारतीय लोकतन्त्र (Indian Democracy) पर प्रहार क्यों?


Indian Democracy

लोकतन्त्र अर्थात जनता द्वारा स्वयं चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन का चलाया जाना, जो किसी भी लोकतन्त्र को समझने के लिए पर्याप्त है और ऐसी ही कुछ व्यवस्था प्राप्त राष्ट्रों की श्रेणी में शुमार है हमारा देश भारत, जहां जनता का शासन, जनता से जनता के लिए चलाया जाता है, लेकिन भारत को मिली ये लोकतान्त्रिक व्यवस्था उसे सौगात में नहीं मिली, बल्कि वर्तमान में आबादी के हिसाब से दूसरे स्थान व क्षेत्रफल के हिसाब से सातवें स्थान पर कायम भारत के लोगों के असीम बलिदान और त्याग के लंबे सिलसिले का परिणाम है ये भारतीय लोकतन्त्र (Indian Democracy) जिसनें सन् 1947 में मिली पूर्ण आजादी के बाद न केवल इस परंपरा को निभाया है अपितु आज भी इसके 73वें स्वतंत्रता दिवस तक इसके निर्वहन की गति अबाध रूप से जारी है जिसके चलते भारतीय लोकतन्त्र भारत के लोगों के अन्तर्मन में आज भी विशिष्ट स्थान पर काबिज है और शायद इसीलिए हमारा राष्ट्र भारत आज पूरी दुनियाँ के लिए अनुकरणीय लोकतंत्र का दर्जा हांसिल करता है, लेकिन बीते कुछ वर्षों से इसी लोकतन्त्र पर बार-बार प्रहार किए जा रहे हैं जिसका ताजातरीन उदाहरण है दुनियाँ के प्रख्यात पत्रकार ब्रायन क्लास (Brian Klass) का जिन्होने इंडिया टुडे कानक्लेव (India Today Conclave) 2019 के कार्यक्रम मंच को साझा करते हुए कहा “भारत में लोकतन्त्र खत्म होने वाला है, वर्तमान प्रधानमंत्री की नीतियाँ इसे खत्म कर देंगी” इतना ही नहीं इससे आगे बढ़कर उन्होने कहा कि “चुनाव महज लोकतन्त्र की शुरुआत है, निष्कर्ष नहीं|उनके द्वारा कहे गए इन शब्दों का आधार क्या था, ये तो मुझे नहीं पता लेकिन इतना जरूर कहूँगी कि आखिर क्यों इतने बड़े मुल्क में कोई भी तर्क लोकतन्त्र को समाप्त करने के दु:स्वप्न तक लाकर छोड़ दिया जाता है| क्या किसी भी राजनीतिज्ञ का दलहित से ऊपर उठकर देशहित में सोचना लोकतन्त्र के खात्मे का अवसर हो सकता है? माना आज भारत की अर्थव्यवस्था अनेकों संकटों से जूझ रही है, जैसा की आंकड़े दर्शाते हैं, GDP 5% है, Manufacturing Growth घटकर 0.6% पर आ गयी है और बेरोजगारी दर (Unemployment Rate) 45 साल के उच्च स्तर पर है, लेकिन क्या सरकार द्वारा प्रयास नहीं किए जा रहे हैं, कुछ एक नीतियों से सरकार के कार्यों का हम समग्र मूल्यांकन कर उसे लोकतन्त्र की अस्मिता से जोड़ दें तो ये कहाँ तक सही है, ये भी तो हो सकता है चंद लोगों की वो सोच हो, आम जन इससे परे हों| इतना बड़ा देश है, इतने लोग हैं और लोगों की अलग-अलग सोच है, पर इन सब के बावजूद भारत के विकास की गति अनेकों मोर्चों पर लगातार जारी है| लोगों के जीवन स्तर में अनुकूल प्रभाव दर्ज हो रहे हैं, जिसकी गवाही के लिए हमें ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं वो हमें आस-पास मौजूद लोगों से महसूस हो रही है| आज भारत में हर किसी को अभिव्यक्ति की आजादी है, क्या ये सारी चीजें काफी नहीं लोकतन्त्र को प्रस्तुत करने के लिए? आखिर क्यों एक बार नहीं, बार-बार भारतीय लोकतन्त्र की अस्मिता पर प्रहार होता है? क्यों कोई दल चुनाव हार जाता है तो लोकतन्त्र खतरे में आ जाता है? ये है क्या? ये सबकुछ भारत की उस सोच का अपमान है जिसमें भारत और भारतीयों ने वसुधैव कुटुंबकम” की परंपरा दुनियाँ को दी, जो राष्ट्र पूरी वसुधा को परिवार बनाने की कल्पना को लेकर चलता हो उसके नागरिक क्या अपने देशहित की बात आने पर पीछे हट जाएंगे? इतिहास गवाह है, न ऐसा कभी हुआ है, न कभी होगा| इस उम्मीद के साथ कि भारत और भारत का लोकतन्त्र सदैव जनता और इसके सेवकों द्वारा सिंचित होता रहे  जय हिन्द, जय भारत...


रविवार, 22 सितंबर 2019

Daughter's Day की आपको ढेरों शुभकामनाएँ !!

Daughter's Day

बेटियों,

सृष्टि का आधार तुम,
तुमसे धरा, तुमसे गगन,
सूने जीवन का संचार तुम,
विधाता का दिया उपहार तुम,
शक्ति का वरदान तुम,
तुम हो तो, हम हैं,
वरन् अभिशप्त सा है ये चमन,
     अभिशप्त सा है ये चमन...||
       स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव (कैलाश कीर्ति)

Daughter’s Day की इस अनुपम बेला में बेटियों को बधाई देने के साथ आइये आज हम सब संकल्प लें कि संसार की इस बगिया में खिले इन बेटी रूपी पुष्पों की चमक कभी फीकी नहीं पड़ने देंगे और “क्या हमारी और क्या आपकी”, बेटी तो बेटी होती है की भावना को लेकर आगे बढ़ें और समग्र समाज को ही बेटियों का सुरक्षित आँगन बनाएँ जहां वो पढ़ें, लिखें, खेलें और अपने जीवन को बिना किसी बंधन के आजादी से जी सकें|

शनिवार, 14 सितंबर 2019

“हिन्दी दिवस” की ढेरों शुभकामनाएँ!!!

हिन्दी दिवस

मित्रों!

आधुनिक हिन्दी के पितामह कहे जाने वाले महान हिन्दी साहित्यकार “भारतेन्दु हरिश्चंद्र” ने कहा था____

“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति के मूल |
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल....|

उनके द्वारा कहे ये शब्द आज भारत राष्ट्र को अंग्रेजों से आजादी प्राप्त किए गए इतने वर्षों बाद भी अंग्रेजों द्वारा छोड़ी गयी भाषा की गिरफ्त से आजादी न मिल पाने के दर्द को बयां करते हैं और न जाने कितनों को स्वयं के अभिव्यक्ति को मात्र भाषा के आधार पर दूसरों तक न पहुंचा पाने की वेदना को भी समेटकर बस हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपनी राजभाषा हिन्दी को न केवल अपने शब्दों में शामिल करें अपितु अपनी सोच को भी हिन्दीमय कर लें क्योंकि ये पीड़ा आज इतनी बढ़ चुकी है कि अब हिन्दी के कुछ शब्दों की तुलना में अँग्रेजी के शब्द हम सभी को आसान लगने लगें हैं|

मन, वचन व कर्म में हिन्दी को शामिल किए जाने की कामना के साथ हिन्दी दिवस” की ढेरों शुभकामनाएँ!!!

सोमवार, 9 सितंबर 2019

भारतीयों की दिलों की धड़कन बना Bollywood संगीत

Bollywood Music


भारत एक ऐसा देश जिसे दुनियाँ के सबसे colorful देश की संज्ञा से नवाजा जाये तो ये अतिश्योक्ति न होगी, क्योंकि ये देश है ही ऐसा| यहाँ के लोगों की ज़िंदादिली, आशावादिता, भाग्य के भरोसे न रहने की दृढ़ता एवं संसाधनों की कमी के बावजूद हौसलों की ऊंची उड़ान देख दुनियाँ दंग है| आखिर! हम भारतीय कैसे कर पाते हैं इतना सबकुछ? तो जी हाँ, हमारी इस सोच के पीछे छिपी होती है कुछ प्रेरक सौगातें, जिनका संबंध विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हमें ऐसा आधार प्रदान कर ही जाता है कि हम सबकुछ कर लेते हैं और जहां तक यथार्थता की बात है तो 130 करोड़ की आबादी वाले दुनियाँ के विशालतम देशों में शुमार भारत एक ऐसा देश है जहां का एक बड़ा तबका माध्यम वर्ग से जुड़ा है और इन परिवारों में आने वाली पीढ़ियों को ज़्यादातर इन्हीं बातों की शिक्षा दी जाती है कि वो जीवन में कैसे सफल व सशक्त बनें और ऐसा करने के लिए ये मध्यमवर्गीय परिवार जिन चीजों का सहारा लेते हैं उनमें से एक होती है “सशक्त किरदार व प्रेरक संगीतों से सुसज्जित Bollywood की हिन्दी फिल्में”, जिन्हें इसके आरंभ से लेकर आजतक के इतिहास ने “समाज का आईना” उपाधि से विभूषित किया है और यही वजह है कि भारतीय सिनेमा आज हम भारतीयों के दिलों में बसता है| इनमें सजे संगीत अब हम सभी के सुख-दुख के साथी बन चुके हैं| आज जब चंद्रयान 2 (Chandrayan 2) की निराशा ने हमें पल भर के लिए झिंझोड़ा तो हमें एक ही बात देश के महान वैज्ञानिकों से कहने का मन हुआ ______

“रुक जाना नहीं तू कहीं हार के....(विनोद खन्ना अभिनीत फिल्म इम्तिहान)”   ये है हमारी और हम सबकी आवाज जो Bollywood फिल्मों में फिल्माए गए गानों के साथ ऐसे घुल जाती है कि विविधता से भरे इस राष्ट्र को एका के सूत्र में पिरो देती है|

आज जब कभी भारतीय खिलाड़ी किसी विश्वस्तरीय मंच पर प्रदर्शन कर रहे होते हैं तो शाहरुख खान अभिनीत “चक दे इंडिया” का वो गाना पूरे देश की पहचान बन जाता है और देशवासियों से मिले हौंसले हमारे खिलाड़ियों के मनोबल को ऐसा बढ़ाते हैं कि कामयाबी उनके कदमों को चूम ही लेती है और ये सिलसिले बदस्तूर जारी है|

अभी कुछ दिन पहले Facebook के जरिये Bollywood संगीत की दुनियाँ में कदम रखने वाली गायिका रानू मण्डल (Ranu Mandal) की कहानी भी हम भारतीयों के हिन्दी सिनेमा संगीत के प्रति हमारे लगाव को दर्शाती है कि कैसे विपरीत परिस्थितियाँ होने के बावजूद उनके जेहन में फिल्मों के ये गीत गूँजते रहे और न केवल गूँजते रहे बल्कि उन्हें एक नयी पहचान भी दे गए|

भारतीय हिन्दी सिने जगत ने ऐसे अनगिनत गीत-संगीत हमारे देश को दिये हैं जिनको हम चाहे जिन अवसरों पर हमारे जीवन में शामिल करें ये हमारे जीवन को एक नयी दिशा दे ही जाते हैं| ऐसे में मेरी बस यही कमाना है कि भारत के सिने जगत से निकलने वाली ये मधुरिम स्वर गंगाएँ भारत राष्ट्र की जमीं को सदैव सिंचित करती रहें| इसी आशा के साथ...
  जय हिन्द... जय भारत!!!

सोमवार, 2 सितंबर 2019

गणपति बप्पा मोरया - Happy Ganesh Chaturthi


Ganesh Chaturthi


एकदन्तं महाकायं लंबोदरगजाननमं |
विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम् ||

चारों दिशाएँ बप्पा के आगमन के जयकारों से गुंजायमान होकर हम सभी को आनेवाले दिनों में भक्ति के रस में अनवरत सिंचित कर उनके आशीर्वाद की कृपा हम सब पर बरसाती रहें| इसी कामना के साथ आप सभी को बप्पा के माँ गौरी के साथ हरतालिका तीज पर द्वि-आगमन की हार्दिक शुभकामनाएँ ||

हुआ है जयकारा, आए हैं बप्पा यारा,
मिटा के धुंध सारा, छाएगा उजियारा |
बरसेंगी अब खुशियाँ, सँवरेगा जग सारा,
जीवंत कर दिशाएँ, चलो बप्पा के रंग, रंग जाएँ |
अब दिन हो या रैना, बप्पा के ही गुन गाएँ,
भक्ति की अलग जगाएँ, अहम् की ज्योति बुझाएँ |
चलो एक बार फिर से, बप्पा की जय मनाएँ
                      स्वरचित रश्मि श्रीवास्तव (कैलाश कीर्ति)

रविवार, 1 सितंबर 2019

युद्ध विभीषिकाओं(War Catastrophe) के परिणाम इतने भयावह फिर भी….

War Catastrophe

जम्मू कश्मीर से धारा 370 (Article 370) हटाये जाने के बाद से भारत को पड़ोसी मुल्क द्वारा लगातार दी जा रही युद्ध की धमकियाँ आज पूरे विश्व में बहस का मुद्दा बन गयी हैं| हालाँकि इस राज्य के हित में लिया गया भारत सरकार का ये फैसला राष्ट्र का आंतरिक मुद्दा है, फिर भी पड़ोसी देश की ये प्रतिक्रिया ऐसी क्यों है, ये अनुत्तरित (unanswerable) प्रश्न है? लेकिन इससे एक कदम और आगे बढ़कर वैश्विक स्तर पर देखें तो वहां भी हालात कुछ सामान्य नजर नहीं आते|  अभी कुछ दिन पहले तक उत्तर कोरिया द्वारा आये दिन जापान, दक्षिण कोरिया व अमेरिका को दी जा रही युद्द की धमकियाँ भी इन्हीं सिलसिलों का एक हिस्सा भर हैं| इससे आगे तो न जाने कितना कुछ प्रतिदिन घटता है, जो युद्ध की शक्ल में ऐसी अघोषित लड़ाइयाँ हैं, जिनपर आये दिन दुनियाँ के किसी न किसी कोने में इंसानियत शर्मसार हो रही है| आज विश्व के कई ऐसे देश हैं जो पूर्व में या वर्तमान में चल रही लड़ाइयों का विध्वंझेल रहे हैं, चाहे वो अफगानिस्तान हो, कुवैत, इराक, सीरिया, लेबनान, इजराइल या फिर फिलिस्तीन, सभी युद्ध रूपी इस हिंसा की भेंट में इंसानी वजूद को या तो झोंक चुके हैं या फिर झोंक रहे हैं|

आखिर इन लड़ाइयों से हांसिल क्या होता है, ये मुझे आजतक समझ नहीं आया| वैसे अगर वैश्विक स्तर पर युद्ध विभीषिकाओं की बात करें तो ज्यादा दूर जाने की जरुरत हमें नहीं पड़ेगी, क्योंकि इन युद्धों को बीते अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है| सन् 1914 से 1918 तक प्रथम विश्व युद्ध (World War I) लड़ा  गया और 1939 से 1945 तक चला द्वितीय विश्व युद्द (World War II) जिसकी गवाही देने वाले भी कुछ लोग इस धरती पर आज भी मौजूद हैं और इनके परिणाम वो तो पूरी दुनियाँ आजतक देख रही है कि कैसे इन युद्धों ने पूरी धरती को आकाश व पाताल सहित झकझोर कर रख दिया| इनके प्रभाव व परिणाम की बात यदि राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व अन्य पहलूओं से परे हटकर मात्र मानवता के विध्वंसात्मक पहलूओं को देखें तो आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं|

दोस्तों अभी कुछ दिन पूर्व मैंने सीरिया की refugee family पर बनी एक documentary देखी, जिसमें एक 9 साल की छोटी बच्ची अपने दादा-दादी, नाना-नानी और cousins को छोड़ अपने माँ-बाप व छोटी बहन के साथ एक refugee camp में रहती है| उसने बताया कि वो कैसे उन छोटी-छोटी खुशियों के लिए परेशान हो जाती है, जो उसे उसके वतन में मिलती थे, उसे नहीं पता की आगे क्या होगा? फिर भी उसकी उम्मीदें सबकुछ ठीक हो जाने की हैं| मुझे तो ये समझ ही नहीं आता की कैसे ये सबकुछ बदलेगा, कैसे बंद होगी ये अघोषित लड़ाई, जो न जाने कितनी मासूम जिंदगियों को झुलसाए जा रही है, और भी मुद्दे हैं यहाँ अशिक्षा, निर्धनता, बीमारी, भुखमरी, प्राकृतिक आपदाएँ जिनपर हमें ध्यान देने की जरूरत है, अगर हमें युद्ध छेड़ना है तो इनके खिलाफ छेड़ना चाहिए| मात्र अपनी एक सोच के लिए कुदरत द्वारा बनाई गयी इस दुनियाँ को आग की लपटों में ढकेलना कहाँ तक उचित है?